Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

Salient Points of PM Modi’s speech at 3rd Anniversary of Swachh Bharat Mission on 02 Oct, 2017

आज 2 अक्‍तूबर है; पूज्‍य बापू की जन्‍म-जयंती, लाल बहादुर शास्‍त्री की जन्‍म-जयंती।

अब मेरा स्‍वभाव है बहुत चीजें मैं चुपचाप झेलता रहता हूं क्‍योंकि दायित्‍व भी ऐसा है कि झेलना भी चाहिए और
धीरे-धीरे मेरी capacity भी बढ़ा रहा हूं झेलने की।

लेकिन आज तीन साल के बाद बिना डगे, बिना हिचकिचाए इस काम में हम लगे रहे और लगे इसलिए रहे‍ कि मुझे
पूरा भरोसा था कि महात्‍मा जी ने जो कहा है, बापू ने जो कहा है, वो रास्‍ता गलत हो ही नहीं सकता।

वही एक श्रद्धा, इसका मतलब ये नहीं है कि कोई चुनौतियां नहीं हैं। चुनौतियां हैं, लेकिन चुनौतियां हैं इसलिए देश
को ऐसे ही रहने दिया जाए क्‍या?

कोई इंसान ऐसा नहीं हो सकता है कि जिसको स्‍वच्‍छता पसंद न हो।

अगर आप रेलवे स्‍टेशन पर जाइए, चार बेंच पड़ी हैं, लेकिन दो में कुछ गंदगी है तो आप वहां नहीं बैठते, जहां अच्‍छी
जगह है वहां जाकर बैठते हैं, क्‍यों? मूलत: प्रकृत्ति स्‍वच्‍छता पसंद करने की है।

दुर्भाग्‍य से हमने बहुत सी चीजें तो सरकार ने कि बना दीं, सरकारी बना दीं। जब तक वो जनसामान्‍य की रहती हैं,
कठिनाई नहीं आती ऐसी। अब आप देखिए कुंभ का मेला होता है। हर दिन गंगा के तट पर कुंभ के मेले में यूरोप का
एक छोटा सा देश इक्‍ट्ठा होता है। लेकिन वो ही सब कुछ संभाल लेते हैं, अपनी चीजें कर लेते हैं और सदियों से चला
आ रहा है।

समाज की शक्ति को अगर स्‍वीकार करके हम चलें, जन-भागीदारी को स्‍वीकार करके चलें, सरकार को कम करते
चलें, समाज को बढ़ातें चलें; तो ये आंदोलन कोई भी प्रश्‍नचिन्‍ह के बाद, बावजूद भी सफल होता ही जाएगा ये मेरा
विश्‍वास है।

आज स्‍वच्‍छता अभियान, ये न पूज्‍य बापू का रहा है, न ये भारत सरकार का रहा है, न ही ये राज्‍य सरकारों का
रहा है, न ही ये municipality का रहा है।

आज स्‍वच्‍छता अभियान देश के सामान्‍य मानवी का अपना सपना बन चुका है। और अब तक जो सिद्धि मिली है, वो
सिद्धि सरकार की है, ऐसा मेरा रत्‍ती भर claim नहीं है। न ये भारत सरकार की सिद्धि है, न ये राज्‍य सरकार की
सिद्धि है, अगर ये सिद्धि है तो स्‍वच्‍छाग्रही देशवासियों की सिद्धि है।

कोई मुझे बताए क्‍या हिन्‍दुस्‍तान में अब आवश्‍यकता के अनुसार स्‍कूल बने हैं कि नहीं बने हैं? आवश्‍यकता के
अनुसार टीचर employ हुए कि नहीं हुए? आवश्‍यकता के अनुसार स्‍कूल में सुविधाएं स्‍कूल के अंदर किताबें, सब हैं
कि नहीं? बहुत एक मात्रा में हैं।

उसकी तुलना में शिक्षा की स्थिति पीछे है। अब सरकार ये कोशिश करने के बाद भी, धन-खर्चे के बाद भी, मकान
बनाने के बाद भी, टीचर रखने के बाद भी, समाज का अगर सहयोग मिलेगा तो शिक्षा शत-प्रतिशत होते से नहीं देर
लगेगी। यही infrastructure, इतने ही टीचर शत-प्रतिशत तरफ जा सकते हैं।

समाज की भागीदारी के बिना ये संभव नहीं है।

सरकार सोचे कि हम इमारतें बना देंगे, टीचरों को तनख्‍वाह दे देंगे तो काम हो जाएगा। हमें संतोष होगा, हां पहले
इतना था इतना कर दिया। लेकिन जन-भागीदारी होगी, एक-एक अब स्‍कूल में बच्‍चा भर्ती होता है फिर आना बंद
कर देता है। अब मां-बाप भी उसको पूछते नहीं हैं।

ये toilet का भी वैसा ही मामला है जी। अब इसलिए स्‍वच्‍छता एक जिम्‍मेवारी के रूप में, एक दायित्‍व के रूप में,
जितना हम एक वातावरण बनाएंगे तो हर किसी को लगेगा हां भाई जरा 50 बार सोचो।

मोदी को गाली देने के लिए हजार विषय हैं अब। आपको हर दिन में कुछ न कुछ देता हूं, आप उसका उपयोग करो
यार। लेकिन समाज में जो बदलाव लाने की आवश्‍यकता है, उसको ऐसे हम मजाकिया विषय या राजनीति के कटघरे
में खड़ा न करें। एक सामूहिक दायित्‍व की ओर हम चलें, आप देखें बदलाव दिखेगा।

मैं जब से प्रधानमंत्री बना हूं बहुत सारे लोग मुझे मिलते हैं। राजनीतिक कार्यकर्ता मिलते हैं, जो retired अफसर हैं
वो मिलते हैं, कुछ समाज जीवन में काम करने वाले भी मिलते हैं। और बहुत विवेक और नम्रता से मिलते हैं, बहुत
प्‍यार से मिलते हैं। और चलते-चलते फिर एक बायोडाटा मुझे पकड़ा देते हैं और धीरे से कहते हैं कि मेरे लिए कोई
सेवा है तो बताना। बस मैं हाजिर हूं आप जो भी कहेंगे।

इतना प्‍यार से बोलते हैं जी, तो मैं धीरे से कहता हूं, ऐसा करिएगा स्‍वच्‍छता के लिए कुछ समय दीजिए ना; वो
दोबारा नहीं आते हैं।

अब मुझे बताइए मेरे से काम मांगने आते हैं, बढ़िया बायोडाटा लेकर आते हैं, और सब देखकर मैं कहता हूं ये करो तो
आते नहीं हैं। देखिए कोई काम छोटा नहीं होता है जी, कोई काम छोटा नहीं होता है। अगर हम हाथ लगाएंगे तो
काम बड़ा हो जाएगा जी और इसलिए हमने बड़ा बनाना चाहिए।

मुझे लगता है श्रेष्‍ठ भारत बनाने के लिए ये छोटा सा काम हर हिन्‍दुस्‍तानी कर सकता है। चलिए रोज 5 मिनट, 10
मिनट, 15 मिनट, आधा घंटा, कुछ न कुछ मैं करूंगा। आप देखिए, देश में बदलाव स्‍वाभाविक आएगा और ये बात
साफ है जी दुनिया के सामने हमने भारत को दुनिया की नजरों से देखने की आदत रखनी है, वैसा करना ही होगा और
करके रहेंगे।