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मोदी की ‘संजीवनी बूटी’ और दम तोड़ते झूठ

अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के संवाददाता सम्मलेन के एक आधे-अधूरे वीडियो के आधार पर मोदी-विरोधी खेमे द्वारा फैलाया जा रहा झूठ आधा दिन भी नहीं टिक सका. ट्रंप और वहां के पत्रकार के बीच हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा के निर्यात संबंधी एक सवाल-जवाब में आई बातचीत को सलीके से तोड़-मरोड़ कर भारत में मोदी से इर्ष्या रखने वाला खेमा  ‘ट्रंप की मोदी को धमकी’ के रूप में बताने की जल्दीबाजी कर बैठा. यह खेमा ऐसी चूक व जल्दीबाजी दिखाने का अभ्यस्त है. पहला झूठ तो यह बोला गया कि ट्रंप ने भारत को धमकी के लहजे में ‘बयान’ दिया है. जबकि यह ‘बयान’ नहीं बल्कि मीडिया से सवाल-जवाब के क्रम में एक विषय केंद्रित सवाल का ट्रंप द्वारा दिया ‘जवाब’ था. कम से कम ऐसे लोगों को ‘बयान’ और ‘जवाब’ का अर्थ ठीक से पता होना चाहिए.

दूसरा झूठ जो भारत में बोला गया, वह यह था कि ट्रंप ने भारत को धमकी दी है. सोमवार शाम हुए उसी संवाददाता सम्मेलन में एक सवाल के जवाब में ट्रंप ने पत्रकारों से कहा कि उन्होंने रविवार को प्रधानमंत्री मोदी से बात की है और उनकी बातचीत बहुत अच्छी रही. उन्हें पता है कि भारत ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात पर रोक लगाईं है, लेकिन यह दूसरे देशों के लिए है. अमेरिका और भारत के संबंध बहुत अच्छे हैं. मुझे नहीं लगता कि वो (मोदी) ऐसा (अमेरिका के साथ) करेंगे.

इस विषय में अमेरिकी मीडिया ने नहीं बल्कि भारत की मीडिया ने मामले को अधिक गुमराह किया है. चूँकि जब राष्ट्रपति ट्रंप सोमावार शाम मीडिया के सवालों का जवाब दे रहे थे, उसके काफी घंटे पहले ही भारत ने हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन के निर्यात संबंधी अपने निर्णय में मानवीयता और अन्तरराष्ट्रीय संबंधों के आधार पर कुछ देशों के लिए ढील दी थी. उन देशों में ब्राजील भी शामिल है. इससे एकबात साफ़ होती है कि जिस पत्रकार ने राष्ट्रपति ट्रंप से यह सवाल पूछा था, संभवत: उसे भारत के इस दवा के निर्यात खोले जाने संबंधी इस निर्णय की जानकारी न रही हो. यही कारण था कि जवाब देते हुए शुरुआत में ट्रंप ने कहा कि, ‘मैंने नहीं सुना है कि ऐसा उनका (मोदी का) निर्णय है.’

खैर, अमेरिकी पत्रकार की अनभिज्ञता से उपजे सवाल के जवाब को भारत की ‘कौवा कान ले गया….पकड़ो-पकड़ो’ वाली मीडिया ने बिना तथ्यों को जाने परखे लपक लिया. इसका परिणाम हुआ कि भ्रम की बुनियाद पर झूठ के रेतीले किले बनने लगे.  जिस हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन दवा को भारत द्वारा अमेरिका भेजे जाने के निर्णय को लेकर ‘ट्रंप की धमकी’ के रूप में परोस कर अपने प्रधानमंत्री को नीचा दिखाने की भरसक कोशिश की जा रही थी, वह निर्णय ट्रंप के जवाब  से पहले ही भारत द्वारा ले लिया गया था.

यह झूठ तो तब और धाराशायी हुआ जब ब्राजील के राष्ट्रपति जेर बोलसोनारो ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिख हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन भेजने के लिए प्रधानमंत्री मोदी का न सिर्फ आभार जताया, बल्कि हनुमान जयंती को याद करते हुए इसे ब्राजील के लिए ‘संजीवनी बूटी’ तक करार दिया. ब्राजील राष्ट्रपति ने अपनी चिट्ठी में लिखा कि संकट की इस घड़ी में भारत द्वारा की गई ब्राजील की मदद रामायण में हनुमान जी द्वारा लक्ष्मण की जान बचाने के लिए संजीवनी लाने जैसी है.

कम से कम से इससे दो बातें साफ़ होती हैं कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन निर्यात में ढील का निर्णय किसी के दबाव में नहीं था और न ही यह सिर्फ अमेरिका के लिए था. यह निर्णय भारत के मानवीय दृष्टिकोण, अन्तर्राष्ट्रीय संबंधों की मर्यादा और परस्पर आदान-प्रदान की भावना के लिहाज से था. एक सवाल और कुछ लोगों के मन में होगा कि आखिर भारत को जब स्वयं जरूरत है ऐसी दवा की, तो बाहर भेजने की अनुमति क्यों दी जा रही है ? तो सरकार द्वारा स्पष्ट किया गया है कि हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन बाहर भेजने के साथ-साथ सरकार अपनी स्वयं की जरूरतों की गंभीरता पूर्वक मोनिटरिंग कर रही है और अपनी जरूरतों को प्राथमिकता दे रही है.

आश्चर्य जनक है कि बंधुत्व, मानवाधिकार और अन्तरराष्ट्रीय सीमाओं के उपर मानवता की बात करने वाले भी बिना तथ्य जाने इसका विरोध कर रहे हैं! क्या गौरव का विषय नहीं है दुनिया के शक्ति-सम्पन्न देश भारत पर निर्भरता जता रहे हैं और भारत सक्षम रूप में दुनिया की मदद कर रहा है!

आश्रित रहने की ग्रंथि और भारत की ताकत में हो रहे बदलावों से कुंठित मानसिकता ही इसका विरोध कर सकती है. इसके लिए चाहें उन्हें ‘झूठ’ की इमारत ही क्यों न बनानी पड़े!

(लेखक डॉ श्यामा प्रसाद मुखर्जी रिसर्च फाउंडेशन में सीनियर रिसर्च फेलो हैं.)