Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

संवैधानिक बदलाव : जम्मू-कश्मीर में नई शुरुआत

आज के आधुनिक समय में जब कानूनी मान्यता किसी भी अन्य वैधतामूलक उपकरणों से अधिक शक्तिशाली हो गया है, ऐसे में जम्मू एवं कश्मीर की कानूनी स्थिति में आया परिवर्तन निश्चित ही निर्णायक है। यह परिवर्तन नए किस्म के बदलाव को प्रोत्साहित कर रहा है और विकास के समक्ष आ रही संवैधानिक दुविधाओं को भी दूर कर रहा है । ध्यातव्य है कि 5 अगस्त 2019 को भारतीय संसद द्वारा अनुच्छेद -370 में ऐसे परिवर्तन किए गए, जिनसे जम्मू एवं कश्मीर से संबंधित विशिष्ट प्रावधान समाप्त हो गए और यह भी शेष भारत की तरह समान अवस्था में आ गया। यह एक क्रांतिकारी बदलाव था क्योंकि लंबे समय से इस बात को लेकर कश्मीर की राजनीति उलझी हुई थी। आज जब इस परिवर्तन के एक वर्ष पूरे हो गए तो यह जानना दिलचस्प होगा कि इन बदलावों से कश्मीर  में क्या फर्क आया और यह किस तरह से जम्मू-कश्मीर की बेहतरी में सहायक हो रहा है ।

अलगाववादी मान्यताओं का अंत 

सबसे पहले इस बात को देखते हैं कि वर्तमान संशोधन से पूर्व जम्मू एवं कश्मीर शेष भारत से किस प्रकार अलग संवैधानिक स्थिति में था और यह कैसे राष्ट्रीय एकता और संवैधानिक संघात्मक व्यवस्था के विरुद्ध था। जम्मू एवं कश्मीर को यह विशिष्ट हैसियत अनुच्छेद -370 तथा अनुच्छेद -35A के विभिन्न प्रावधानों से प्राप्त होती थी। यहॉं हम कुछ महत्वपूर्ण प्रावधानों की ही चर्चा करेंगे। हम सब जानते हैं कि भारतीय संविधान एकल नागरिकता की स्थिति को स्वीकार करता है किंतु कश्मीर में न केवल दोहरी नागरिकता का प्रावधान था बल्कि यहॉं के लिए अलग ध्वज और अलग संविधान भी था। जाहिर सी बात है कि ऐसी स्थिति में किसी भी राज्य का शेष राष्ट्र के साथ एकीकरण असंभव है। कश्मीर भी इसका अपवाद नहीं था। वहॉं, आए दिन अलगाववादी विचार को इन्हीं ‘कानूनी प्रावधानों’ की आड़ में ठीक ठहराने की कोशिश की जाती थी।

इसी प्रकार हमारे देश का संविधान सभी नागरिकों को यह अधिकार देता है कि वो देश के किसी भी हिस्से में जमीन खरीद सके और वहाँ बस सके। यह एक मौलिक अधिकार है। इस अधिकार के मूल में यह बात है कि सभी नागरिक बराबर हैं तथा उनमें स्थान के आधार पर भेदभाव नहीं किया जा सकता है। किंतु दुर्भाग्य से जम्मू एवं कश्मीर में यह अधिकार लागू ही नहीं होता था। यहाँ दूसरे राज्य के निवासी न तो जमीन खरीद सकते थे, न सरकारी नौकरी पा सकते थे और न ही यहाँ की किसी संस्थान में दाखिला ही ले सकते थे। ऐसी विशिष्टताएं पृथक्तावाद को प्रोत्साहित करती थी।

इसी निरंतरता में देखें तो भारतीय संसद को संघीय व समवर्ती सूची पर कानून बनाने का अधिकार है और वो सभी राज्यों पर लागू होता है किंतु जम्मू एवं कश्मीर पर लागू नहीं होता था। रक्षा, विदेश मामले तथा संचार के अलावा किसी भी अन्य कानून को लागू करवाने के लिए राज्य सरकार की मंजूरी अनिवार्य होती थी। जाहिर सी बात है कि यह अतिरिक्त शक्ति जम्मू एवं कश्मीर का शेष भारत से एकीकरण को हतोत्साहित करता था। इतना ही नहीं भारतीय दंड संहिता जो पूरे देश में समान कानून की व्यवस्था करता है वो भी यहॉं लागू नहीं था। साथ ही सूचना का अधिकार तथा शिक्षा का अधिकार जैसे प्रगतिशील और आम जन मानस को सशक्त करने वाले कानूनों को भी जम्मू एवं कश्मीर में लागू नहीं किया जा सका था। यहॉं तक कि सर्वोच्च न्यायालय भी काफी सीमित शक्ति के साथ ही यहॉं न्यायिक हस्तक्षेप कर सकते थे। इन सब का असर यह होता था कि इस मान्यता को बल मिलता था कि जम्मू एवं कश्मीर एक अलग कानूनी इकाई है।

इसके अलावा जम्मू एवं कश्मीर को जनांकिकी रूप से अलग बनाए रखने के लिए ऐसे कानून बनाए गए थे कि वृहद अर्थों में एकता कभी स्थापित हो ही न पाए। उदाहरण के लिए जम्मू एवं कश्मीर की कोई महिला यदि भारत के किसी अन्य राज्य के व्यक्ति से विवाह करती थीं तो उस महिला की जम्मू एवं कश्मीर की नागरिकता खत्म हो जाती थी। यह प्रावधान जम्मू एवं कश्मीर को किसी अलग राष्ट्र की तरह व्यवहार करने के लिए प्रेरित करता था।

उपरोक्त उदाहरणों से इतना तो स्पष्ट है कि जम्मू एवं कश्मीर को प्राप्त ये तमाम विशिष्टताएं उनके विकास में कोई योगदान तो नहीं ही करते थे बल्कि अलगाववादी मानसिकता को खुराक मुहैया कराते थे। इसलिए पिछले वर्ष जब केंद्र सरकार ने अनुच्छेद -370 और अनुच्छेद -35A को निष्प्रभावी बनाया तो इसका पहला बड़ा असर यह हुआ कि अब जम्मू एवं कश्मीर संवैधानिक व कानूनी रूप से शेष भारत की तरह हो गया है। यह एकीकरण की संवैधानिक पुष्टि हुई। यहाँ से एकीकरण की एक नई शुरुआत चिन्हित की जा सकती है।

नए कानूनों का लागू होना

ऊपर के शीर्षक के तहत मूल रूप से संवैधानिक हैसियत की व्याख्या की गई थी कि कैसे वो जम्मू एवं कश्मीर की अलग स्थिति को वैधता प्रदान कर रहा था। इस शीर्षक के तहत हम कुछ ऐसे विशिष्ट कानूनों के लागू होने के प्रभाव देखेंगे जिनसे जम्मू एवं कश्मीर अबतक वंचित रहा था। इसमें सबसे पहले ‘सफाई कर्मचारी एक्ट’ का उल्लेख करना समीचीन होगा। वस्तुतः, 1950 के दशक में जम्मू एवं कश्मीर ने संकट के समय पंजाब राज्य से अनेक सफाई कर्मियों को अपने यहाँ बुलाया। और एक बार जब संकट समाप्त हो गया तो उन्हें इस आधार पर सुविधाओं और राज्य की नौकरियों से वंचित कर दिया कि वो जम्मू एवं कश्मीर के नागरिक नहीं थे। इससे इनकी स्थिति अत्यंत दयनीय बनी रही। अब केंद्र सरकार ने निर्णय लिया है कि जम्मू एवं कश्मीर में सफाई कर्मचारी एक्ट लागू करके इनकी स्थिति सुधारी जाएगी। साथ ही डीओपीटी मंत्रालय ने जम्मू एवं कश्मीर के लिए शिकायत निवारण, सिटिजन पोर्टल तथा आरटीआई पोर्टल को भी नए सिरे से शुरू कर दिया है। इनका सम्मिलित प्रभाव वहॉं की पारदर्शी शासन व्यवस्था में दिखेगा और अधिक लोकोन्मुखी शासन संभव हो सकेगा।

इसके अतिरिक्त केंद्र सरकार ने जम्मू एवं कश्मीर द्वारा बनाए गए अलग मानवाधिकार कानून को समाप्त कर दिया है तथा अब वहॉं भी ‘राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग’ कार्य कर सकेगा। इससे मानवाधिकार को लेकर पूरा देश एक नजरिये से व्यवहार कर सकेगा। साथ ही, मंत्रियों की शपथ और उच्च न्यायलय के न्यायाधीशों के स्थानांतरण के संदर्भ में भी पूरे देश का कानून एक समान हो गया।

इसके अतिरिक्त देखें तो विभिन्न अधिकरण जैसे देश की शीर्ष प्रशासनिक अधिकरण ‘सीएटी’ भी जम्मू एवं कश्मीर में कार्य कर सकेगी। इससे न केवल न्यायालय का भार कम होगा बल्कि प्रशासनिक दुविधा का आसान निपटारा भी संभव हो सकेगा। सरकारी एजेंसी अपना काम पूरी ईमानदारी और दक्षता से करें इसकी निगरानी के लिए ‘केंद्रीय सतर्कता आयोग ‘(सीवीसी) जैसी संस्था है।

दुर्भाग्य से यह संस्था अब तक जम्मू एवं कश्मीर के मामले में दखल नहीं दे सकती थी पर अब ये ऐसा कर सकेगी। निश्चित ही इससे भ्रष्टाचार पर प्रभावी अंकुश लग सकेगा।

एक अन्य संदर्भ में देखें तो वहाँ कार्यरत सरकारी कर्मचारियों के लिए भी अब कई सकारात्मक बदलाव मूर्त रूप ले रहे हैं। जम्मू एवं कश्मीर तथा लद्दाख के लिए 7वें वेतन आयोग के अनुरूप भत्ता जारी कर दिया गया तथा इस प्रकार 4800 करोड़ रूपये जारी किए गए।

इसी प्रकार अब वहॉं के कर्मचारियों को पारिवारिक चिकित्सा भत्ता तथा बच्चों की शिक्षा के लिए भत्ता (सीईए) जैसी अनेक सुविधाओं को मुहैया करा दी गई हैं। इसके अतिरिक्त जम्मू एवं कश्मीर राज्य लोक सेवा आयोग को भी पुनर्संरचित किया जा रहा है। साथ ही अनेक अन्य रोजगार संबंधी उपायों को शुरू कर रही है। कुल मिलाकर कहा जा सकता है कि जम्मू एवं कश्मीर में आए संवैधानिक परिवर्तन से वहॉं विकास की नई संभावना बन रही है।

किसी भी संवैधानिक या कानूनी प्रावधानों में बदलाव का प्रभाव तुरंत दिखे ऐसा नहीं होता, लेकिन यह बड़े बदलाव का वाहक बनता है यह निश्चित है। भारतीय संविधान के संदर्भ में भी इसे हम देख सकते हैं। इसके लागू होने के साथ ही भारत ने तरक्की नहीं कर ली बल्कि इससे तरक्की की बुनियाद पड़ी। जम्मू एवं कश्मीर के संबंध में किए गए परिवर्तन को भी इसी संदर्भ में देखना चाहिए। कुछ बदलावों का असर निश्चित रूप से एक साल के भीतर ही देखने को मिल गया,  लेकिन इसका असली प्रभाव अगले कुछ वर्षों में दृष्टिगोचर होगा जब सरकारी प्रयास और निजी निवेश के माध्यम से वहॉं विकास के नए प्रयोगों को अपनाया जाएगा। मूल बात यह है कि एक बंद और पृथक क्षेत्र अब खुल गया है। इससे आगे की यात्रा सुगम ही होगी।

(लेखक इतिहास के अध्येता हैं तथा मीडिया की भी पढ़ाई की है। विभिन्न अखबारों और ऑनलाइन पोर्टल्स के लिए नियमित लेखन करते हैं।) 

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