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विपक्ष ने संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए फैलाई हिंसा

भूपेंद्र यादव

पिछले कुछ दिनों में उत्तर-पूर्वी दिल्ली के कई इलाकों में पैदा हुई हिंसा व अशांति की वजह से राष्ट्रीय राजधानी में अस्थिरता की स्थिति उत्पन्न हुई . निर्विवाद है कि किसी भी तरह की हिंसा और अराजकता के लिए लोकतंत्र में कोई जगह नहीं है. किंतु दुखद है कि ऐसी परिस्थितियों का भी कांग्रेस सहित विपक्ष द्वारा अपने संकीर्ण राजनीतिक हितों के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है. दरअसल इस हिंसा की पृष्ठभूमि में ‘भ्रामकता’ का एक ऐसा तानाबाना है, जिसे कांग्रेस सहित कुछ अन्य दलों द्वारा नागरिकता कानून लागू होने के बाद से ही बुना जा रहा था. अब जब दिल्ली नाजुक दौर से गुजर रही है, तब भी कांग्रेस पार्टी द्वारा दिल्ली हिंसा को लेकर भ्रामक बयानबाजी करके भाजपा पर बेबुनियाद आरोप गढ़ने का प्रयास किया जा रहा है.

दरअसल कांग्रेस के लिए यह कोई नई बात नहीं है. देखा जाए तो आजादी के बाद से ही कांग्रेस देश के अल्पसंख्यकों के मन में भय और असुरक्षा की भावना पैदा कर अपना वोटबैंक साधने की रणनीति पर चलती रही है. कालक्रम में वोटबैंक साधने की इस विभाजनकारी रणनीति को कुछ और दलों ने भी आजमाने में संकोच नहीं किया है. देश के सामने इन राजनीतिक दलों द्वारा फैलाई जा रही गलत सूचनाओं के प्रति जागरूक, संयमित और सजग होने की चुनौती है. ऐसे में यह आवश्यक हो जाता है कि कुप्रचारों की वास्तविकता को सामने लाया जाए.

गत 24 फरवरी को जब अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भारत पहुँचने वाले थे, उससे कुछ ही समय पूर्व दिल्ली के कई इलाकों में नागरिकता कानून के विरोध के नाम पर विरोध प्रदर्शन और सड़क बंद करने की गतिविधियाँ शुरू हुईं. ट्रंप के भारत में रहते हुए देश की राजधानी में हिंसक गतिविधियाँ करने से किसका राजनीतिक हित सधता है, यह समझना कठिन नहीं है. आमतौर पर जब कोई विदेशी मेहमान आता है तो देश के मान, सम्मान और प्रतिष्ठा को बरकरार रखने की चिंता सभी की होनी चाहिए. किंतु कांग्रेस ने इस मामले में भी मर्यादित आचारण के विपरीत काम किया. उनके लिए प्राथमिकता उनके राजनीतिक हितों का सधना है, बजाय कि वे देश के मान-स्वाभिमान की फ़िक्र करते!

दिल्ली हिंसा के कारणों की चर्चा में बयानों की बात कांग्रेस द्वारा की जा रही है. बयानों के आधार पर दूसरो पर ऊँगली उठाने वाली कांग्रेस तथा आम आदमी पार्टी को अपने नेताओं द्वारा अत्यंत शुरूआती स्तर पर दिए गये बयानों की अनदेखी नहीं करनी चाहिए थी. इसके बाद से दिल्ली में सड़क बंद करने और प्रदर्शनों का सिलसिला शुरू हो गया. कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के नेता शाहीन बाग़ के सड़क बंद आन्दोलन में शामिल हुए और लगतार उकसाऊ बयान दिए. शाहीन बाग़ के अलावा दिल्ली के अन्य मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में नागरिकता संशोधन क़ानून के नाम पर लोगों के मन में भय और असुरक्षा की भावना को बढ़ावा देकर विरोध प्रदर्शन खड़े करने का काम भी किया गया. क्या दिल्ली हिंसा के कारणों को समझते हुए, ऐसे बयानों की अनदेखी की जा सकती है ?

दिल्ली की हिंसा के पीछे वह लोग हैं, जो भाजपा को मुस्लिम विरोधी सांप्रदायिक राजनीतिक दल सिद्ध करने के अपने विफल प्रयत्नों के कारण हताशा की स्थिति में हैं. उनकी हताशा से उपजी यह हिंसा आकस्मिक नहीं, पूर्व-नियोजित प्रतीत होती है, क्योंकि इसमें भीड़ द्वारा न केवल विशेष प्रकार के पत्थर बल्कि बम और बंदूकों से भी सामान्य लोगों सहित दिल्ली पुलिस के अधिकारियों पर भी हमला किया गया. स्पष्ट है कि दिल्ली को अशांत करने के लिए ये पूरी तैयारी महीनों से चल रही थी, क्योंकि ऐसे हथियार अचानक लोगों के हाथों में नहीं आ सकते.

दिल्ली में जो हिंसा हुई है, उसके पीछे देश के अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों के बीच फैलाया गया निर्मूल भय ही कारण है. विपक्ष को बताना चाहिए कि ये भय कौन फैला रहा है? विपक्ष को यह भी बताना चाहिए कि शांति बहाली के लिए तैनात सुरक्षाबलों पर इस ‘शांतिपूर्ण’ प्रदर्शन के दौराल हमला कैसे हो गया? अगर यह प्रदर्शन ‘शांतिपूर्ण’ थे, तो इनमे सार्वजनिक संपत्ति को क्षति कैसे पहुँच गयी?
बच्चों और महिलाओं की आड़ लेकर इस विरोध प्रदर्शन को शांतिपूर्ण सिद्ध करने की कोशिश हो रही है, मगर वास्तव में अधिकांश प्रयत्न मुस्लिम लोगों के भीतर यह भ्रामक धारणा पैदा कर हिंसा भड़काने की दिशा में हैं कि देश में उनकी नागरिकता संकट में है. हालांकि भारतीय जनता पार्टी और सरकार द्वारा अनेक बार यह स्पष्ट किया जा चुका है कि इस कानून से भारत के किसी भी नागरिक की नागरिकता को कोई खतरा नहीं है. जब विपक्ष से यह पूछा जाता है कि नागरिकता संशोधन क़ानून किस प्रकार से मुस्लिम विरोधी है, तो उनके पास कोई जवाब नहीं होता.

सरकार अनेक अवसरों पर यह स्पष्ट कर चुकी है कि सीएए किसी समुदाय के खिलाफ नहीं है, यह केवल हमारे कुछ पड़ोसी देशों में उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को सुरक्षा प्रदान करने के लिए है. लेकिन सबकुछ जानते हुए भी कांग्रेस सहित अन्य विपक्षी दल अपने निजी राजनीतिक हितों के लिए इस तथ्य को स्वीकारने को तैयार नहीं हैं. विपक्ष को समझना चाहिए कि नागरिकता संशोधन क़ानून भारतीय संसद द्वारा पारित किया गया है. ऐसे में संसद द्वारा किए गए कानूनी परिवर्तन को विरोध के माध्यम से हटवाने का हठ लोकतंत्र को बंधक बनाने की कोशिश के सिवाय और कुछ नहीं है.

विपक्ष द्वारा सिर्फ अपने वोटबैंक के लिए लोगों को भरमाने और डराने की कीमत दिल्ली को चुकानी पड़ी है. जो 35 लोग इस हिंसा में मरे हैं, इनमें दिल्ली पुलिस के कांस्टेबल रतन लाल और आईबी अधिकारी अंकित शर्मा भी शामिल हैं.

सरकार द्वारा लगातार शांति और संयम बरतने तथा सौहार्द्र कायम रखने की अपील की गयी है. स्थिति सामान्य हो, इसके लिए त्वरित प्रयास किये जा रहे हैं. खुद राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोभाल ने अशांत क्षेत्रों का दौरा कर स्थिति का जायजा लिया है.

लोकतंत्र में विरोध प्रदर्शनों के लिए पूरी जगह है, लेकिन इसकी आड़ में हिंसा और देश विरोधी गतिविधियाँ स्वीकार नहीं की जा सकतीं. हम उम्मीद करते हैं कि विपक्ष इस हिंसा का शिकार हो रहे निर्दोष लोगों की तरफ देखते हुए लोगों में अनावश्यक भय पैदा करना बंद करेगा और क़ानून व्यवस्था स्थापित करने में सरकार की मदद करेगा.

(लेखक भाजपा के राष्ट्रीय महासचिव एवं राज्यसभा सांसद हैं. लेख उनके ब्लॉग से लिया गया है.)