Dr. Syama Prasad Mookerjee Research Foundation

केजरीवाल का झूठ

– डा. जितेंद्र बजाज

निदेशक, समाजनीति समीक्षण केंद्र, नई दिल्ली

 

अपने कुछ साथियों के साथ दो दिन गुजरात की सड़कों पर घूमने के पश्चात् अरविंद केजरीवाल स्थान-स्थान पर कहते फिर रहे हैं कि उन्होंने गुजरात के विकास के विषय में सब कुछजान लिया है, वास्तव में वहाँ विकास जैसा कुछ हुआ ही नहीं है। गुजरात की कृषि के संबंध में उनका विशेषतः कहना है कि गुजरात सरकार के दावों के विपरीत पिछले दस वर्षों में वहाँकृषि में विकास नहीं बल्कि 11 प्रतिशत प्रति वर्ष का ह्रास हुआ है। आंकड़े प्राप्त करने के लिये अरविंद केजरीवाल के कुछ अपने निजी स्रोत होंगे, उन्होंने बताया नहीं है कि वे किनआंकड़ों के आधार पर अपनी बात कह रहे हैं। पर भारत सरकार का आंकड़ों के संकलन का अपना एक बड़ा और सक्षम तंत्र है। इस तंत्र के विभिन्न विभागों द्वारा संकलित एवं प्रकाशितआंकड़ों के अनुसार गुजरात की अर्थव्यवस्था के विभिन्न आयामों में पिछले दसेक वर्षों में अद्भुत विकास हुआ ही दिखता है।

गुजरात का सकल उत्पादन

भारत के एवं विभिन्न राज्यों के सकल घरेलू उत्पाद संबंधी ‘राष्ट्रीय खाता सांख्यिकी’ आंकड़ों का संकलन भारत सरकार के सांख्यिकी एवं कार्यक्रम क्रियान्वयन मंत्रालय द्वारा नियमितकिया जाता है। ‘राष्ट्रीय खाता सांख्यिकी’ की एक नयी श्रृंखला 2004-05 से प्रारंभ की गयी थी। इस श्रृंखला के आंकड़ों के अनुसार 2004-05 में गुजरात का कुल घरेलू उत्पाद 203 सहस्रकरोड़ रुपये था, 2011-12 में 399 सहस्र करोड़ रुपये है, ये दोनों आंकड़े 2004-05 के भावों के अनुसार हैं। इसका अर्थ है कि इन 7 वर्षों में गुजरात का कुल उत्पाद दो गुना हुआ है।

गुजरात के सकल उत्पाद में कृषि का भाग 2004-05 में 26.7 सहस्र करोड़ था, 2011-12 में 45 सहस्र करोड़ है। इस प्रकार इन 7 वर्षों में कृषि उत्पाद में प्रायः 70 प्रतिशत की वृद्धि हुई है।इस अवधि में देश के कृषि उत्पाद में मात्र 32 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। गुजरात के सकल उत्पाद में विनिर्माण (मेन्युफेक्चरिंग) का भाग 2004-05 में 55.4 सहस्र करोड़ था, 2011-12 में112.5 सहस्र करोड़ है। राज्य में विनिर्माण क्षेत्र का उत्पाद भी इस प्रकार दोगुना हुआ है। इन आंकड़ों से तो स्पष्ट है कि गुजरात में कृषि एवं विनिर्माण दोनों क्षेत्रों में पर्याप्त और देश कीअपेक्षा कहीं अधिक वृद्धि हुई है।

गुजरात का कृषि विकास

ऊपर के सब आंकड़े विभिन्न क्षेत्रों में 2004-05 के स्थिर भावों पर उत्पादन के मूल्यों के आंकड़े हैं। विभिन्न क्षेत्रों में वास्तविक उत्पादन के आंकड़ों का भी संकलन होता है। कृषि के लियेऐसे आंकड़े भारत सरकार के कृषि एवं सहयोग मंत्रालय के अर्थ एवं सांख्यिकी निदेशालय द्वारा संकलित किये जाते हैं और इनका बहुत व्यापक स्तर पर प्रसार होता है। अर्थ एवंसांख्यिकी के विषय में कुछ रुचि रखने वालों के लिये ऐसे आंकड़े सुगमता से सुलभ रहते हैं।

इन आंकड़ों के अनुसार 2001-02 में गुजरात में फसलों के अंतर्गत सकल क्षेत्र 107 लाख हेक्टेयर था, 2010-11 में 122 लाख हेक्टेयर है। नौ वर्षों में फसलों के अंतर्गत के क्षेत्र में 15लाख हेक्टेयर का अथवा 14 प्रतिशत का विस्तार छोटा नहीं होता। सिंचित क्षेत्र में और भी बड़ा विस्तार हुआ है। 2001-02 में गुजरात में शुद्ध सिंचित क्षेत्र 30 लाख हेक्टेयर था, 2010-11 में 42 लाख हेक्टेयर है। सिंचित फसलों का सकल क्षेत्र इस अवधि में 36 लाख हेक्टेयर से बढ़ कर 56 लाख हेक्टेयर हुआ है। इस प्रकार 9 वर्षों में सिंचाई लगभग डेढ़ गुना बढ़ गयी है।फसलों के उत्पादन में भी पर्याप्त वृद्धि हुई है। इस समय गुजरात की सबसे बड़ी दो फसलें कपास एवं गेहूँ हैं। 2000-01 में गेहूँ के अंतर्गत क्षेत्र 2.87 लाख हेक्टेयर था और उस वर्ष कुल6.50 लाख टन गेहूँ का उत्पादन हुआ था। 2010-11 में 15.8 लाख हेक्टेयर क्षेत्र पर गेहूँ की खेती हुई है और लगभग 50 लाख टन गेहूँ का उत्पादन हुआ है। 2000-01 का वर्ष कृषि केलिये बहुत अच्छा नहीं था, पर हम 2000-01 के आगे-पीछे के तीन वर्षों और 2009-10 के आगे-पीछे के तीन वर्षों का औसत भी ले लें तो इन नौ वर्षों में गेहूँ का क्षेत्र प्रायः 2.8 गुना औरउत्पादन साढ़े-तीन गुना हुआ है।

कपास की खेती में भी वैसी ही उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। 2000-01 में राज्य में कपास का क्षेत्र 15.4 लाख हेक्टेयर था और लगभग 21 लाख गाँठ कपास उगी थी, 2010-11 में लगभग 26लाख हेक्टेयर पर कपास की खेती हुई है और 97 लाख गाँठ कपास का उत्पादन हुआ है। यहाँ भी हम 2000-01 के आगे पीछे के और 2009-10 के आगे-पीछे के सालों के जोड़ कर तीन-तीन वर्षों की औसत ले लें तो कपास के क्षेत्र में लगभग डेढ़ गुना और उत्पादन में 5 गुना की वृद्धि इन नौ सालों में हुई है। केंद्र सरकार द्वारा संकलित एवं प्रकाशित इन आंकड़ों केअनुसार तो गुजरात की खेती में पिछले दसेक वर्षों में असाधारण वृद्धि हुई है।   कृषि उत्पाद 20 प्रतिशत बढ़ा है, फसलों का सकल क्षेत्र 14 प्रतिशत बढ़ा है, सिंचाई डेढ़ गुना हुई है, गेहूँका उत्पादन साढ़े-तीन गुना हुआ है, कपास का उत्पादन पांच गुना हुआ है।

इन सब आंकड़ों की अनदेखी करते हुए अरविंद केजरीवाल गुजरात में कृषि के ह्रास की कहानी बताते हुए घूम रहे हैं। आंकड़ें सड़कों पर तो पड़े नहीं होते, न ही गुजरात के किसी खेत कोदेख कर यह अनुमान लगाया जा सकता है कि इस वर्ष यहाँ कितना उत्पादन होगा और दस वर्ष पहले कितना हुआ होगा। इसलिये दो दिन गुजरात में घूम कर वहाँ के विकास के विषयमें जान लेने की बात असंगत ही है। पर अरविंद केजरीवाल का तो आंकड़ों से गहरा संबंध रहा है, वे भारतीय राजस्व सेवा के अधिकारी रहे हैं। उनके साथियों में अनेक ऊँचे समाजविज्ञानीहैं, दिल्ली विश्वविद्यालय, जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय एवं समाजविज्ञान के अन्य उच्च संस्थानों के प्राचार्य हैं। यह मानना कठिन है कि वे यह न जानते हों कि आंकड़े कैसे औरकहाँ से लिये जाते हैं और किस प्रकार आंकड़ों का संकलन एवं आकलन किया जाता है। फिर भी यदि वे गुजरात में कृषि के ह्रास की बात करते फिर रहे हैं तो वे जान-बूझ कर झूठ हीबोल रहे हैं। उन्हें और उनके साथियों को कदाचित् लगता है कि राजनीति तो झूठ से ही चलती है, राजनीति में कुछ भी कहा जा सकता है। पर वे तो राजनीति को सुधारने आये थे,उन्होंने और उनके साथियों ने समाजविज्ञानियों वाली अपनी सत्यनिष्ठा क्यों छोड़ दी।

वैसे पिछले दस वर्षों में अनेक राज्यों में और विशेषतः भाजपा-प्रशासित राज्यों में कृषि की स्थिति बहुत सुधरी है। मध्यप्रदेश में तो इस दशक में एक नयी हरति-क्रांति ही हो गयी है।उसकी चर्चा फिर कभी।

 

 

(साभार – यथावत)